- महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. में रविवार के दिन विक्रम संवत 1597 को कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल में हुआ।
- महाराणा प्रताप उदय सिंह के जेष्ठ पुत्र थे इनकी माता का नाम महारानी जयवंता बाई था जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी।
- महाराणा प्रताप का विवाह 1557 इसी में महारानी अजबदे पंवार के साथ हुआ जिनसे 16 मार्च 1569 ई. में अमर सिंह का जन्म हुआ।
- महाराणा उदय सिंह ने अपने प्रिय रानी के कहने पर पुत्र जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित करवाया परंतु 28 फरवरी 1572 ई. को उदयसिंह की मृत्यु के बाद वरिष्ठ सामंतों ने जगमाल को अपदस्थ कर दिया और प्रताप को महाराणा के रूप में राज्य तिलक किया।
- 1570 ई. में अकबर ने नागौर दरबार लगवाया जिसमें प्रताप के अतिरिक्त अधिकतर राजपूतों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
प्रताप को अधीनता स्वीकार करने के लिए अकबर ने 4 शिष्टदल भेजें जो निम्न थे:-
- पहली बार जलाल खाँ को नवंबर 1572 ई. में भेजा।
- दूसरी बार आमेर के शासक मानसिंह को जून 1573 ई. में भेजा।
- तीसरी बार आमेर के भगवानदास को अक्टूबर 1573 ई. में भेजा।
- चौथी बार टोडरमल को दिसंबर 1573 ई. में भेजा।
ये चारों शिष्ट मंडल प्रताप को समझाने में असफल रहे तो अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए मान सिंह व आसफ खाँ के नेतृत्व में विशाल सेना भेज दी। मानसिंह को मुख्य सेनापति बनाया गया।
हल्दीघाटी का युद्ध:-
राजस्थान के राजसमंद जिले में नाथद्वारा से 11 किलोमीटर पश्चिम में इतिहास प्रसिद्ध रणस्थली हल्दीघाटी स्थित है जहां पर 18 जून 1576 ईस्वी को महाराणा प्रताप व मुगल सेनापति मानसिंह के मध्य हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
हल्दीघाटी के युद्ध का उद्देश्य:-
प्रताप द्वारा अधीनता स्वीकार न करने के कारण अकबर नाराज हो गया। अकबर महाराणा प्रताप को जीवित पकड़ कर मुगल दरबार में खड़ा करना अथवा मार देना चाहता था उसके संपूर्ण राज्य को मुगल राज्य में प्रताप के राज्य को मिला लेना चाहता था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकबर ने मान सिंह के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण करवाया।
दोनों सेनाओं का युद्ध स्तल पर पहुंचना:-
मुगल सेनापति मानसिंह 3 अप्रैल 1576 ईस्वी को शाही सेना लेकर अजमेर रवाना हुआ उसने पहला पड़ाव मांडलगढ़ में डाला जहां वह 2 माह तक रहा इसके बाद नाथद्वारा से लगे हुए खमनोर के मोलेला गांव के समीप पड़ाव डाला मुगल सेना के आगमन की सूचना पाकर प्रताप के गोगुंदा और खमनोर की पहाड़ियों के मध्य स्थित हल्दीघाटी नामक तंग घाटी में अपना पड़ाव डाला।
युद्ध का आरंभ होना:-
18 जून 1576 ईस्वी प्रातः काल रणभेरी के साथ युद्ध प्रारंभ हो जाता है दोनों सेनाएं आमने-सामने हुई यह युद्ध हल्दीघाटी के दरों से लेकर खमनोर गांव तक लड़ा गया।
महाराणा की विजय:-
प्रताप की सेना प्रतिरोध की धवाला में शत्रुओं पर बिजली की तरह टूट पड़ी। मेवाड़ी सेना के भीषण प्रहार को झेल न सकी और उनकी अग्रिम पंक्ति धवस्त हो गई। मेवाड़ी सरदारों ने भागती हुई मुगल सेना को नहीं छोड़ा और मुगल सेना के केंद्रीय भाग पर टूट पड़े जिससे मुगल सेना में आतंक छा गया। सैनिक प्राणों की रक्षा के लिए 10-20 मील तक भागते गए और बनास के तट पर जाकर रुके। प्रथम चरण के युद्ध में महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खान सूर का नेतृत्व सफल रहा।
प्रताप का मानसिंह पर आक्रमण:-
दूसरे चरण के युद्ध में भागे हुए सैनिकों में जोश उत्पन्न करने के लिए मुगलों के आरक्षित फौज के प्रभारी मिहन्तर खाँ ने यह झूठी अपवाह फेला दी कि बादशाह अकबर शाही सेना लेकर आ रहे हैं अकबर के आने की बात सुनकर मुगल सेना की हिम्मत बंदी और वे पुनः युद्ध के लिए तैयार होकर आगे बढ़े महाराणा प्रताप के नेतृत्व में राजपूत बनास नदी वाले मैदान में आ गए। इस युद्ध में प्रताप की ओर से घोड़े व रामप्रसाद हाथी ने तथा मुगलों की ओर से गजमुक्ता व गजराज के मध्य युद्ध में भाग लिया । रामप्रसाद हाथी के माहवत के मारे जाने के कारण रामप्रसाद मुगलों के हाथ लग गया । जिसका बाद में अकबर ने पीर प्रसाद नाम कर दिया।
जैसे ही महाराणा प्रताप की नजर मुगल सेनापति मानसिंह पर पड़ी जो मर्दाना नामक हाथी पर बैठा था प्रताप ने स्वामी भक्त घोड़े चेतक को इशारा किया इशारा पाकर चेतक हाथी की तरफ लफका और अपने पैर हाथी के सिर पर टिका दिए महाराणा प्रताप ने अपने भाले से भरपूर प्रहार मानसिंह पर किया परंतु मानसिंह होद से छिप गया और पीछे बैठा अंगरक्षक मारा गया व होद की छतरी का एक खंभा टूट गया इसी समय हाथी की सूंड से बंधे हुए जहरीले खंजर से चेतक की टांग कट गई। चेतक बलीचा गांव में स्थित एक छोटे से नाले को पार करते हुए परलोक सिधार गया।
बलीचा गांव में ही चेतक की छतरी बनी हुई है।
युद्ध का परिणाम:-
- मुसलमान इतिहासकार इस युद्ध में मुगलों की जीत बताते हैं कुछ मेवाड़ के लेखक प्रताप की जीत बताते हैं कुछ इतिहासकार इसे परिणाम विहित अथवा अनिर्णयत इस युद्ध की संज्ञा देते हैं। इस युद्ध में मुगल सेना विजय प्रमाणित नहीं होती है क्योंकि अकबर की मानसिंह व आसफ खाँ के प्रति नाराजगी जिसमें उनकी दयोढ़ी बंद कर दी गई इससे साफ जारी होता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप की विजय हुई।
- फरवरी 1577 ईस्वी में स्वयं अकबर व 1577 ईस्वी से लेकर नवंबर 1579 ईस्वी तक शाहबाज खान तथा 1580 ईस्वी में अब्दुल रहीम खानखाना के नेतृत्व में सेना भेजी गई लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली महाराणा प्रताप ने मालपुरा में झालरा तालाब के निकट नीलकंठ महादेव का मंदिर बनवाया तथा 1585 ईस्वी में मेवाड़ के दक्षिण पश्चिम (छप्पन का मैदान) के शासक लूणा चावंडिया को पराजित करके चावंड को अपनी आपातकालीन राजधानी बनाई चावंड में महाराणा प्रताप ने चामुंडा माता का मंदिर बनवाया।
- 1597 ईस्वी में धनुष के प्रत्यंचा चढ़ाते समय प्रताप के गहरी चोट लगने के कारण 19 जनवरी 1597 ईस्वी को चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई बाडोली गांव के निकट बहने वाले नाले के तट पर दाग संस्कार किया।
- प्रताप की मृत्यु का समाचार जब अकबर तक पहुंचा तो उसे बड़ा दुख हुआ। अकबर के इस स्थिति का वर्णन अकबर के दरबार में उपस्थित दुरसा आढ़ा इस प्रकार किया है राणा तेरी मृत्यु पर बादशाह ने दांत के जीव दबाई और निश्वास से आंसू टपकाए क्योंकि तूने अपने घोड़े को नहीं दगवाया और अपनी पगड़ी को किसी के सामने नहीं झुकाया वास्तव में तुम सब तरह से जीत गया।
- विदेशी इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड़ की धर्मपत्नी और दिवेर को मेवाड़ का मैराथन कहां है।